जारी है.. घोड़े का ढाई घर चलना.. और ऊँट की तिरछी चाल..
विशेष लेख
शैलेश तिवारी
अग्रसोच न्यूज़
अजब एम पी की गजब सियासत में... राजा और महाराजा के बीच... शुरू हुआ शह और मात का खेल... बलि चढ़ गई कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार की...। राजा और महाराजा...दोनों तरफ के प्यादों ने अपनी अपनी निष्ठा तो जाहिर कर दी... लेकिन उप चुनाव में उनकी अग्नि परीक्षा का दौर आना बाकी है..।
शह मिली नाथ सरकार को.... सेहरा बंधने का मुहूर्त कमल के हिस्से में आया...। शतरंज के खेल की तरह... अभी भी ऊँट की तिरछी चाल... और घोड़े के ढाई घर की चाल... चलने का खेल जारी है... ठीक उसी तरह.... जब दिसंबर 18 में प्रदेश की जनता ने... वोट भाजपा को ज्यादा दिए... लेकिन सीटें कांग्रेस के हिस्से में ज्यादा आ गई....। सीटों का फ़ासला भी केवल पांच सीटों का.... बहुमत किसी के पास नहीं...। सबसे बड़े दल के रूप में कांग्रेस को आमंत्रण मिला... सपा, बसपा और निर्दलियों से... गठजोड़ की सरकार बनने का रास्ता साफ हुआ...। तब भी कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद को लेकर... खींचतान मची... सिंधिया और कमलनाथ के बीच...। पंद्रह महीने का सत्ता सुख... कमलनाथ के हिस्से में आया....।... शतरंज का खेल अभी थमा नहीं है... जारी है... गेंद अब भाजपा के पाले में है... प्रदेश के स्थापित लोकप्रिय नेता और तेरह साल तक मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह... एक बार फिर मुख्यमंत्री की दौड़ में सबसे आगे हैं....। कमलनाथ सरकार को गिराने में अहम भूमिका निभाने की वजह से... जन नेता होने से... सर्वमान्य लीडरशिप के कारण उनका दावा... मजबूत है.... लेकिन भाजपा का वर्तमान शीर्ष नेतृत्व... का मिजाज महाराष्ट्र, उत्तराखंड, हिमाचल, दिल्ली, उत्तरप्रदेश आदि राज्यों में दूसरी पंक्ति के नेतृत्व को मौका देने का रहा है..। इस बात को ताकत भाजपा के उस कदम से भी मिलती है जब 2018 के चुनाव में सीएम की कुर्सी गंवाने के बाद शिवराज सिंह को प्रदेश की राजनीति में न रहने देकर केंद्र में बुला लिया था। ....तो क्या मध्यप्रदेश के मामले में भी वैसा ही सोचा जा रहा है कि प्रदेश में द्वितीय पंक्ति के नेतृत्व को आगे बढ़ाया जाए...। या फिर सिंधिया के राज्यसभा में जाने के बाद.. केंद्रीय मंत्री के पद पर उन्हें आसीन कर देने पर... प्रदेश के ग्वालियर - चंबल संभाग से.. नरेंद्र सिंह तोमर के पहले से केंद्रीय मंत्री के रूप में विराजमान होने से.. क्या क्षेत्रीय संतुलन को बनाए रखना भी भाजपा के सामने एक सवाल होगा...। शायद इन्हीं कारणों पर चिंतन मंथन के दौर के चलते... अभी तक मध्यप्रदेश के विधायक दल की बैठक नहीं हो पाई है...। ऐसी संभावनाओं के चलते क्या प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी.. नरेंद्र सिंह तोमर के हिस्से में जा सकती है...जो अपने क्षेत्र में भाजपा के कद्दावर नेता के रूप में जाने जाते हैं...शिवराज सरकार में मंत्री पद हो या प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष का दायित्व....सभी को जिम्मेदारी से तोमर ने निभाया है....या फिर मोदी और शाह की जोड़ी.. जो हमेशा चौँकाने वाले निर्णय लेने के लिए जाने जाती है.. वो कोई और अन्य नाम पर भी विचार कर रही है..। यहाँ क्षेत्रीय संतुलन वाले बिंदु को ध्यान में रखा जाए... तो वह नाम नरोत्तम मिश्रा का भी हो सकता है....।
यानि दिसम्बर 18 की तरह कांग्रेस की जगह वो खींचतान अब भाजपा के खेमे मे जारी है। अंतर केवल एक है कि शिवराज सिंह चौहान मुख्यमन्त्री नहीं बनाए जाने पर... बगावत नहीं करेंगे... क्योंकि यह उनका स्वभाव नहीं है..। खैर भाजपा का निर्णय जल्दी ही सामने आएगा... जब राज्यपाल द्वारा भाजपा को दूसरे बड़े दल के रूप में प्रदेश में सरकार बनाने के लिए आमन्त्रित करने का मौका आएगा...। अभी तो कांग्रेस के उस ट्वीट पर भी नजर डालना वाजिब होगा... जिसमे आगामी 15 अगस्त की परेड की सलामी कमलनाथ द्वारा लिए जाने की बात कही जा रही है। इस ट्वीट को 25 सीटों पर संभावित उपचुनावों से जोड़कर देखा जा रहा है। जिसमें कांग्रेस के 22 बागियों की अग्नि परीक्षा बताई जा रही है। इन सबको क्या भाजपा टिकट दे पाएगी...? अगर दे भी दिए... तो भाजपा के पुराने स्थापित नेताओं का व्यवहार कैसा होगा..? भाजपा नेतृत्व के लिए यह चुनोती होगी... और कांग्रेस इसमें अपना भविष्य देख रही है...। वहीं आष्टा के विधायक रघुनाथ मालवीय ने जरूर एक हास्यापद बयान देकर... सुर्खियां बटोरने का काम किया है कि.... कांग्रेस के सभी बागियों को भाजपा टिकट देगी...। जिस फैसले को लेने में भाजपा के नेतृत्व को पसीना आने वाला है... उसको इन महोदय ने घोषित ही कर दिया...। अभी सत्ता के द्वार पर पहुंची भाजपा की नन्हीं चिटियाँ भी... अपने परों से आसमान को नाप देने.. का दावा करने लगी हैं..। यही है अजब प्रदेश की गजब राजनीति.... जहाँ घोड़े के ढाई घर... और ऊँट की तिरछी चालें अभी भी चली जा रही हैं...।