2004 में कैलाश जोशी ने भोपाल से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की
भोपाल। 1998 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और मुख्यमंत्री थे दिग्विजय सिंह। इस दौरान हुए चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस और दिग्विजय सिंह को उनके गढ़ में घेरने के लिए कैलाश जोशी को मैदान में उतारा। यहां से कांग्रेस प्रत्याशी दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह कांग्रेस प्रत्याशी थे। दिग्विजय सिंह जब भी कैलाश जोशी से मिलते गुरुजी कहकर जोशी के चरण स्पर्श करते थे।
हालांकि कैलाश जोशी चुनाव 56 हज़ार से कुछ अधिक मतों से हार गए। लेकिन अपने भाई को जीत दिलाने के लिए मुख्यमंत्री को काफी मशक्कत करनी पड़ी दिग्विजय सिंह ने साख बचाने के लिए इस संसदीय क्षेत्र में पहली बार सबसे ज्यादा चुनावी सभाएं की और गांवों में जनसंपर्क किया।
इस चुनाव से भाजपा के नए युग में कैलाश जोशी की धाक एक बार फिर भाजपा में जम गई। भले ही लोकसभा चुनाव हार गए लेकिन भाजपा ने उन्हें राज्यसभा में भेजा। 2002 में जब विक्रम वर्मा को दिल्ली बुलाया गया और उमा भारती ने भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनने से इनकार कर दिया तब अंदरूनी कलह से जूझ रही भाजपा को बचाने के लिए कैलाश जोशी को मध्यप्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया।
2004 में कैलाश जोशी ने भोपाल से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की और ये जीत 2014 तक बरकरार रही। 2014 में जोशी ने आडवाणी को भोपाल से चुनाव लड़ने आमंत्रित किया। जैसे ही भोपाल में आडवाणी के पोस्टर लगे भाजपा की सियासत गरमा गई। मामला इतना बड़ा की आडवाणी को तो भाजपा ने गांधीनगर(गुजरात) से टिकट दिया, लेकिन जोशी को भोपाल से मैदान में नहीं उतारा। लेकिन भाजपा ने उनकी बात रखते हुए जोशी के पुत्र दीपक जोशी के मित्र आलोक संजर को भाजपा उम्मीदवार बना दिया।
2014 के बाद से जोशी सक्रिय राजनीति से दूर होते चले गए। भाजपा के कार्यक्रमों में वे दिखते जरूर थे लेकिन चुप ही रहते। भाजपा के 75 फार्मूले के तहत उन्हें न तो राज्य न तो केंद्र में कोई बड़ी ज़िम्मेदारी मिली।
कार तक लोगों ने दी थी गिफ्टछ कैलाश जोशी में इतनी सादगी थी कि उनके पास एक कार तक नहीं थी। 17 मई, 1981 को कैलाश जोशी लगातार पांचवी बार बागली से विधायक बने. इसके लिए कार्यकर्ताओं ने कैलाश जोशी का सम्मान कार्यक्रम रखा। अटल बिहारी वाजपेयी और राजमाता सिंधिया भी इस कार्यक्रम में आईं। राजनीति में संत कहलाने वाले जोशी का मंच पर सम्मान हुआ और कार्यकर्ताओं ने चंदे से पैसा जुटाकर खरीदी गई एम्बेसडर कार की चाबी जोशी को सौंपी गई।